HINDI STORY: मजबूरी

अरे ये टमाटर क्या भाव दिए….सब्जी के ठेले पर रखे टमाटर को हाथों से छूकर पूछते हुए उस मोहल्ले के कथित नेता जी ने उस सब्जी वाले से भाव पूछ लिया…!

भैया जी 40 रुपए किलो हैं…. टमाटर के ढेर पर हल्का सा पानी छिड़कते हुए सब्जी वाले ने कहा…!
का बे हमको मुर्ख समझा है क्या..वहा मण्डी में तो 30 का भाव चल रहा और तुम 40 में बेच रहे हो…नेता जी गरज के बोले..!

भैया जी वो मण्डी का थोक भाव होगा….हम यहाँ गली गली घूम कर बेंच रहे तो कुछ तो भाव में फर्क रहेगा न..? सब्जी वाले की आवाज में उसकी व्यासायिक मजबूरी झलक रही थी..!

बे यार तुमको पता है तुम किससे बात कर रहे हो….हम यहाँ के लीडर है….मोहल्ले में कोई भी बवाल होता है लफड़ा होता है तो लोग हमको ही आकर मदद मांगते है… इस मोहल्ले में अगर दुकान चलानी है तो हमारे ही हिसाब से भाव देना होगा..25 के किलो दे दो….चलो तौल दो दो किलो ज्यादा बक बक करने की हमको आदत नही है… नेता जी ने झोले को फैलाते हुए कहा…!

बड़ा घाटा हो जायेगा….इतना में तो हमको भी नही मिलता है…सब्जी वाला याचना करता हुआ बोला…!
लगता है तुमको इस मोहल्ले में वापिस लौट कर नही आना है…एक बार बोला न चलो तौल दो…नेता जी गले में पड़े गमछे को सही करते हुए ताव खाने लगे..!
चलो आप पेंतीस में ले लो…सब्जी वाला नम होकर बोला।

नही पचीस तो बस पचीस…एक रुपया अधिक न देंगे…नेता जी ऊँचे सुर में बोले।
नुकसान हो जायेगा मालिक….आप कही और ले लो….हमारा रस्ता छोड़ो हमे जाने दो…सब्जी वाला ठेले को आगे बढ़ाने की कोशिश में लग गया..!

लगता है तुम ऐसे नही मानोगे….यह कहकर नेता जी ने ठेले के पहिये को एक ओर से उठा कर उसे पलटने की कोशिश करने लगे….छोटा सा सब्जी का ठेला एक ओर से जोर लगाते ही पलट गया….ठेले पर रखी सब्जियां सड़क पर बिखर गयी..।

ठेले वाला यह सब देख के कुछ कहता तब तक कही से अचानक चार नए उम्र के लड़के लोग दो बाइक से आते है…सबने पी रखी हुई है… नेता जी से पहले उनका नाम पूछते है और फिर उनको पकड़ के वही रोड पर ही मारने लग जाते है… हॉकी डंडे से लैस वो लड़के नेता जी को पटक के तोड़ने लग जाते है…. उनमे से एक अपनी जेब से देसी कट्टा निकाल के नेता जी को निशाना बनाने लगता है…।

तभी घर के अंदर से उनकी बूढी माँ आकर चिल्लाने लगती है अरे कोई तो मेरे बेटे को बचा लो नही तो यह लोग उसकी जान ले लेंगे…यह आवाज सुनकर अब तक सड़क किनारे सर पकड़ के बैठे सब्जी वाले को जाने क्यों जोश आ जाता है वह उठता है…सर पे गमछा लपेट अकेले ही उन लड़को से भिड़ जाता है.. उन लड़को की हॉकी स्टिक लेकर पहले तो कट्टे वाले लड़के की धुनाई करता है और फिर बाकि तीनो की भी तबियत से धुलाई कर देता है…।

अचानक हूये इस हमले के लिये लड़के तैयार नही थे…गालियां देते हुए गिरते पड़ते वह वहा से अपनी अपनी बाइक लेकर भाग लेते है….!
जमीन पर घायल पड़े नेता जी को सहारा देकर सब्जी वाला उठाता है और फिर उन्हें उनके घर के अंदर तक छोड़ के आता है…..नेता जी की आँखो में ग्लानि के आँसू है….वह उस सब्जी वाले की तरफ देख अपनी गलती के लिये क्षमा माँगने लगते है… ।

कुर्ते पर लगी मिटटी को झाड़ता हुआ सब्जी वाला कहता है….नेता जी हमने आपके लिये अपनी जान जोखिम में नही डाली वो तो बस माता जी की करूँण पुकार सुनकर मुझसे रहा नही गया और मै अपनी परवाह न कर आपको बचाने कूद पड़ा…. आपसे बस यही गुजारिस है की आइन्दा से कभी किसी मजबूर की मजबूरी का फायदा उठाने से पहले उसकी बेबसी को भी देख लिया कीजिए….जा रहा हूँ आज से आपके मोहल्ले में नही आऊंगा….आपको आपका मुहल्ला मुबारक हो यह कहकर वह घर से बाहर आ जाता है….सड़क पर पड़ी सब्जियों को अपना ठेला सीधा करके फिर से रखने लगता है……माथे पर बह चले पसीने को पोछ वह सब्जियां रख रहा है….अभी उसे अपने धन्दे में हुए नुकसान का भी हिसाब करना है…।

लेखक: विशाल सिंह